Monday, August 8, 2016

नामवर सिंह


अपने अंतिम अरण्य में फिर से उलझाता हूँ मैं
 # मूलचन्द गौतम

नामवर सिंह की प्रथम और अंतिम रूचि पोलिटिक्स नहीं पोलेमिक्स है .इसलिए जिन लोगों की प्रथम और अंतिम रूचि पोलिटिक्स है वे उन्हें चीन्ह्नने में अक्सर चूक जाते हैं .उनका परम प्रिय शेर अर्ज है –

जो सुलझ जाती है गुत्थी ,फिर से उलझाता हूँ मैं


नामवर सिंह  निराला की कविता में मोगल दल की तारीफ़ ढूंढ कर लाते हैं .उनके पट्ट आलोचक डॉ . रामविलास शर्मा के वैदिक साहित्य के अध्ययन और पांचजन्य के साक्षात्कार को संघी झुकाव में लपेटकर उनकी मिटटी पलीद करते हैं . शुक्लजी की परम्परा के विरुद्ध दूसरी परम्परा की खोज करते हैं .निर्मल वर्मा के उपन्यास अंतिम अरण्य को उनके हिन्दू मोक्ष की कामना से जोड़कर मार्क्सवाद विरोधी सिद्ध कर रहे हैं. भाजपा के पाकिस्तान में विवादित बयान के शिकार और अवमूल्यित आडवाणीजी के सहधर्मी  जसवंत सिंह की किताब के लोकार्पण में जान बूझकर जाते हैं और गाली खा रहे हैं  बनारस में प्रलेस के राज्य सम्मेलन में  बिहार के राजेन्द्र राजन खफा हैं –आपने ऐसा क्यों किया .गलत सन्देश जाता है .जनता हमसे सवाल करती है ,हम क्या जबाब दें ?नामवर सिंह चुपचाप मन में मुस्कुरा रहे हैं –बच्चू आगे आगे देखो . दरअसल उन्हें मालूम हैं विवादास्पद होने के मजे .
 नामवर सिंह के पचहत्तर के होने पर प्रभाष जोशी ने भारत भर में आयोजन किये .यह जैसे उनका अश्वमेध यज्ञ था .तो उसी दौर के सिपहसालार रामबहादुर राय जब इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के कर्ता धर्ता बने तो उन्हें याद आया कि अब नामवर सिंह नब्बे के हो रहे हैं .इस मौके को भुनाया जा सकता है नामवर सिंह के बहाने, क्योंकि लौंडे लपाड़ों  की साहित्य अकादमी की पुरस्कार वापसी जिसमें उनके लक्ष्मण भी शामिल हो गये थे , से असहमति जताकर नामवरजी अपनी भावी रणनीति का संकेत दे चुके थे .फिर चूंकि मोदी जी भी बनारसी हो चुके हैं तो जुगलबंदी होने में बुराई क्या है ?आखिर जब अन्य कलाएं अमूर्त राजनीति के मजे लेती हैं तो साहित्य क्यों पीछे रहे ?आखिर विद्या निवास मिश्र भी तो राज्यसभा की शोभा बढ़ा ही चुके थे .अब कोई उन्हें बीजेपी  का सलाहकार बताये या कलाकार क्या फर्क पड़ता है ?जब महाबली का पतन घोषित किया जा चुका है तो उसकी कोई सीमा तो नहीं हो सकती . एकांत के अंतिम अरण्य में जाने से बेहतर है अनेकान्तवाद .तो वे भी  कबीर की तरह चौराहे पर लुकाठा लेकर खड़े हो सकते हैं और तुलसीदास की तरह घोषित कर सकते हैं –काहू की बेटी सों बेटा न ब्याहबों ....
अब जो लोग उनसे हिंदी क्षेत्र का सार्त्र या नोम चोमस्की होने की अपेक्षाएं रखते हैं उनका खुदा हाफिज .फ़िलहाल मोदीजी देश के प्रधानमन्त्री हैं ......
@ शक्तिनगर,चन्दौसी ,संभल उ . प्र. 244412 मोबाइल-9412322067



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