Thursday, August 18, 2016

वाग्वीरों का ओलम्पिक

#मूलचन्द्र गौतम

हिंदी में किसी संदर्भ में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का  नाम लेने का मतलब ही गम्भीरता है .अपने उत्साह नामक प्रसिद्ध निबन्ध में उन्होंने वीरों पर भी विचार किया था .इनमें युद्धवीर ,दानवीर ,दयावीर ,कर्मवीर ,बुद्धिवीर से बड़े थे वाग्वीर .तुलसी के लोकमंगल को साहित्य का आदर्श मानने वाले आचार्यप्रवर ने इन वीरों को यथोचित सम्मान से याद नहीं किया जबकि बाबा ने कलिकाल में इन्हीं की महिमा को सर्वोत्कृष्ट ठहराया .जो कह झूठ मसखरी जाना कलियुग सोई गुनवंत बखाना या पंडित सोई जो गाल बजाबा.अब उन्हें क्या पता था कि कलिकाल में ये वाग्वीर नेता लोकतंत्र के चुनावी दंगल में रामराज्य की ऐसी तैसी कर देंगे . इनमें से ज्यादातर संत ,साधू ,साध्वी और महंत होंगे ,जो सत्ता के चस्के को वैराग्य के चोले में आगे बढ़ाएंगे .बाबा ने ऐसे ही नहीं कह दिया था –तपसी धनवंत दरिद्र गृही .इन तपसियों का व्यापार अरबों –खरबों में पंहुच गया है .इनका आलीशान रहन सहन पांच सितारा होटलों को मात करने वाला है .सत्ता में इनकी हनक और धमक है .बिना इनकी मर्जी के सत्ता का पत्ता तक नहीं हिलता.बाबा को क्या पता था कि जनता जनक के बजाय धनक को चुनेगी और सत्ता सुंदरी सबसे बड़े गपोड़ी  वाग्वीर को चक्रवर्ती सम्राट के रूप में चुनेगी .
प्यारेलाल बाबा के साथ शुक्लजी के परमभक्त हैं .उनके पास हर मौके और माहौल के लिए चुने हुए दोहे ,चौपाई और कहावतों का भंडार है जिसे वे गाहे बगाहे बेहिचक अचूक तरीके से हर फील्ड में  इस्तेमाल करते रहते हैं .इसीलिए उनके सामने मेरे कच्चे पक्के तर्क धराशायी हो जाते हैं .उनके लिए वाकयुद्ध महाभारत और राम रावण युद्ध से ज्यादा बड़ा और  व्यापक जनसंहार का उदाहरण है .अक्सर  भारत –पाक के बीच के सम्वादों के सुअवसरों पर वाककौशल,वाकचातुर्य,वाग्विदग्ध ,वाक्छल जैसी व्यापक कूटनीतिक शब्दावली के प्रयोगों के हिमायती प्यारेलाल का जोश विद होश हमेशा अटलजी की टक्कर का होता है .ऐसे में उनकी कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है .जिह्वाग्र पर साक्षात सरस्वती विराजमान हो जाती हैं .लिखा हुआ भाषण कूड़ेदान की शोभा बढ़ाता है .
प्यारेलाल इन जुमलों को  अर्थव्यवस्था से लेकर खेलकूद तक  बड़ी कुशलता से खींचकर ले जाते हैं.उनके अनुसार  विश्व में विकसित देशों को ही ओलम्पिक में अग्रिम पंक्ति में स्थान प्राप्त होता है .उनके लिए खेलकूद अर्थव्यवस्था में वर्चस्व से किसी मामले में कम नहीं होते .उनके विश्व रिकार्ड धारी खिलाडियों का दर्जा  किसी फ़िल्मी और इल्मी हीरो –हीरोइन से कम नहीं होता ,जबकि अविकसित देशों में उनका अंत  प्राय :बड़ा दुखद होता है . राष्ट्रीय खेल हाकी के जादूगर  दादा ध्यानचंद को आज तक भारत रत्न के काबिल नहीं समझा गया .इसके पीछे उसी पुरानी कहावत का हाथ है जिसमें खेलने कूदने को खराब होने की गारंटी की तरह माना जाता था .पहलवानों को तो आज तक अक्ल से पैदल माना जाता है .खेलों में भी इतनी राजनीति चलती है कि उसके तमाम तथाकथित संघों पर नेता ही हावी रहते हैं .आज तक किसी राजनीतिक दल के घोषणापत्र में ओलम्पिक में पदकों की संख्या को शामिल नहीं किया .जबकि भावी प्रधानमन्त्री को यह बताना चाहिए कि उसे जनता चुनाव में जितनी सीटें देगी ,वह उतने ही पदक देश को दिलाएगा .बल्कि यह कोटा राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए भी निर्धारित किया जाना चाहिए कि वे कितने ऐसे खिलाडी तैयार करेंगे जो देश को पदक दिलाने की जिम्मेदारी निभाएंगे .
भारत की गुलामी की मानसिकता के कारण आज तक क्रिकेट के अलावा किसी खेल और खिलाडियों को  इज्जत –शोहरत और पैसा नहीं मिलता .जबकि क्रिकेट का मामूली सा खिलाडी विज्ञापनों से ही करोड़ों कमा लेता है .इनर और अंडरवियर तक उन्हीं के नाम से बिकते हैं .
भारत में राजनीति एकमात्र खेल है जिसमें किसी योग्यता की जरूरत नहीं है .सिर्फ दस बीस कत्ल ,बलात्कार,भ्रष्टाचार के मुकदमे चुनाव जीतने के लिए काफी हैं .वाग्वीरता सारी कमियों को पूरा कर देती है .जनता भी उसी मायावी मदारी को पसंद करती है जो भले करे कुछ नहीं लेकिन हांके ऊंची ऊंची ,वादे भी ऐसे करे जो दस बीस साल तक  अपनी जगह से हिलें नहीं . जनता में सतयुग ,रामराज्य लाने ,गरीबी हटाने ,रंगीन टीवी ,साडी –कपड़ा और सबसे ऊपर भरपेट दारू .भोले भाले लोगों को और क्या चाहिए ?उनका यही तात्कालिक विकास है बाकी सब नेताओं का खेला है .यही कारण है कि उनकी दौलत साल दर साल एवरेस्ट की ऊंचाई तक को पीछे छोड़ जाती है .जबकि खेलकूद की दुनिया में देश नीचे से भी फर्स्ट नहीं आ पाता.
 कल्पना कीजिये कि इन दशानन वाग्वीरों  का कोई ओलम्पिक आयोजित किया जाय या स्वप्न सुंदरी के स्वयम्वर में इन्हें आमंत्रित किया जाय तो क्या होगा ? सारे स्वर्णपदक यही ले उड़ेंगे .नारद मोह की लीला उलट जायेगी .पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड इन्हीं की सुग्रीव में वरमाला डालेगी .धीरे धीरे भ्रष्टाचार की सुरसा इस राशि को लाखों करोड़ में बदल देगी . इनका धोबी पाट कभी खाली नहीं जाता .स्विस बैंक इनकी इस खून पसीने की कमाई को बड़े जतन से संभाल कर सुरक्षित रखते हैं ताकि कोई भी उसे नजर तक न लगा सके . सनसनी और अफवाहों को फ़ैलाने में माहिर ये वाग्वीर पानी में आग लगाने की क्षमता से लैस होते हैं .उन्हें मालूम होता है कि कहाँ कौन सा हथियार काम करेगा .धर्म ,जाति से लेकर गाय भैंस तक इनके काम की चीजें होती हैं . वैसे भी वर्तमान में परमाणु युद्ध से पहले वाकयुद्ध ही पृष्ठभूमि की तैयारी करता है . अबकी बार विश्व के सर्वश्रेष्ठ लोकतंत्र अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव तक में वाकयुद्ध का जो छिछला स्तर देखने को मिला है ,उसे लेकर लोग हैरान –परेशान हैं .यह वहां की बंदूक संस्कृति से ज्यादा घातक है .
प्यारेलाल ने आँखें फाड़कर मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे उन्होंने एक साथ करोड़ रूपये देख लिए हों .मैंने कहा प्यारेलाल जी आज के जमाने में पनवाड़ी और कुंजड़े भी करोडपति से कम नहीं .यह तुम्हारा जमाना नहीं जहाँ पतियों की तो पूरी पल्टन होती थी लेकिन लखपति दूर दूर तक दर्शन नहीं देता था .प्यारेलाल को लगा कि किसी ने  उनके सिर पर लाखों  करोड़ों की  यह गठरी रख दी है जिसके बोझ से उनकी नाजुक कमरिया दोहरी हुई जा रही है और लोग समझ रहे हैं कि वे सजदे में हैं .

@शक्तिनगर,चन्दौसी,संभल उ.प्र. 244412  मोबाइल-9412322067
ईमेल-moolchand.gautam@gmail.com

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