Friday, September 2, 2016

दस का सिक्का उर्फ़ मुर्दों का बीमा



देश भर में अफवाह फैली हुई है कि दस का सिक्का बंद हो गया है . अर्थशास्त्र का पुराना सिद्धांत कि नकली मुद्रा असली मुद्रा को बाजार से बाहर कर देती है-फेल हो चुका है .अब विश्व की असली मुद्रा सिर्फ डालर है . इसलिए थोड़े दिन में सौ का नोट भी कोई मायने नहीं रखेगा .न्यौछावर में भी मिनिमम रेट पांच सौ का होगा .यह देश की तरक्की का बढ़ता हुआ ग्राफ है क्योंकि पहले चवन्नी –अठन्नी बंद हुई थीं तो सिर्फ भिखारियों को नुकसान हुआ था लेकिन अब उन्हें ख़ुशी हासिल हुई है कि चलो दस रुपया भी दुर्गति को प्राप्त हुआ . जगह जगह  चलन से बाहर की मुद्राओं के संग्रहालय बनेंगे. कुछ नकचढ़े अमेरिकी अर्थशास्त्री  इसे भारतीय मुद्रा बाजार में रघुराम राजन की पराजय मान रहे हैं .जबकि देश के मजदूर खुश हैं कि अब इससे  कम से कम उनकी न्यूनतम मजदूरी फोर फिगर में हो जायेगी और वे भी देश के सम्मानित मध्यवर्ग में शामिल हो जायेंगे .
प्यारेलाल इस माहौल से परेशान हैं कि देश का क्या होगा भगवान ?मैंने उन्हें नेक सलाह दी है कि आजीवन अख़बार और टीवी से दूर रहें क्योंकि यही सारी बीमारी की जड़ है . गीता का यही निष्कर्ष है - संशयात्मा विनश्यति. समाधिस्थ होकर ही इस महाभारत पर विजय पायी जा सकती है .
 लेकिन गीता के इस ज्ञान के विपरीत देश में अमीर होने का शौक इस कदर बढ़ रहा  है कि लोगों ने आमदनी के हजार तरीकों में मुर्दों का बीमा भी शामिल करा दिया है . देश में बोफोर्स तोप घोटाले ने घूस का रेट हजारों करोड़ में पंहुचा दिया था जिसे टू जी ने  ओलम्पिक रिकार्ड की तरह तोड़ दिया .अब फैशन में सेक्स सीडी आ गयी है .सामूहिक बलात्कार जैसे सम्वेदनशील मुद्दे को लेकर मंत्री और संतरी तक हलकान हैं .किसी के पास समस्या का कोई हल नहीं .आखिर में लोग इसी नतीजे पर पंहुचेंगे कि देश नेताओं के भरोसे नहीं भगवान भरोसे ही चलेगा .

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