Sunday, September 18, 2016

खाट और खटमल का रिश्ता


व्यंग्य

जल ,जंगल और जमीन के मालिक आदिवासी मनुष्य ने सांप ,बिच्छुओं से बचने के लिए चारपाई को ईजाद किया होगा .उसी के लिए बाद में आकार के अनुरूप  खाट ,खटिया ,खटोला शब्द प्रयोग में आने लगे .इन्हीं प्रयोगों में कुछ मौलिक मुहावरे प्रविष्ट हो गये ,जिनसे खाट के विविध अर्थ खुले .खाट खड़ी होना ,खाट उलटना ,खाट कटना आदि आदि .
 जब से डबल बेड फैशन में आया है तब से खाट देहात में भी प्रचलन से बाहर हो गयी है .खाट बुनने की कला मृतप्राय हो चुकी है . गर्मी में खरहरी बंसखट पर पेड़ के नीचे दिन में लेटने के मजे ही अलग होते थे .कूलर ,एसी इस ठंडक के आगे फेल थे . चौपालों पर रात में किस्सागो और  आल्हा –ढोला सुनाने वाले जब खाट पर बैठकर लम्बी लम्बी तानें लेते थे तो वक्त का पता ही नहीं चलता था .शादी –ब्याहों में बारात के विशेष स्वागत के लिए आसपास के गाँवों तक से खाटों और मट्ठे की एडवांस बुकिंग शुरू हो जाती थी .खाटें बदल न जाएँ इसके लिए उनके मालिकों का नाम उनपर लिख दिया जाता था .दहेज में दिए जाने वाले पलंग की मजबूती तो उसके पीढ़ियों तक बरकरार रहने से नापी जाती थी . इसीलिए उसकी इज्जत भी मामूली खाट से ज्यादा होती थी .
आज भी फाइव स्टार होटलों तक में सरसों के साग और मक्की की रोटी के साथ गुड़ की डली की मांग होती है .देहाती थीम के चलते मचिया भोज की डिमांड रहती है .ढाबों में तो खाटों पर बैठकर खाये बिना  ड्राइवरों और शहरातियों को चैन ही नहीं पड़ता .इसी पुराने दौर को पोलिटिक्स में वापस लाने के वास्ते पीके ने पुराने मरियल खटमलों के कायाकल्प के वास्ते खाट सभा की योजना बनाई है  . लेकिन खाट के साथ में हुक्के को वे भूल गये इसीलिए लोग खाटों को ले उड़े .हुक्का साथ में रहता तो लोगों खाटों को उड़ाने में शर्म आती .दरअसल पीके को  देहाती मैनेजमेंट की समझ ही नहीं.  जाट और तेली का पुराना किस्सा उन्हें मालूम ही नहीं .उन्हें देहातियों को मर्यादा में बांधना आता ही नहीं .खाट और खटमल का रिश्ता उन्हें पढ़ाया ही नहीं गया . किसी भी अहिंसक समाज में  मक्खी ,मच्छर ,खटमल जैसे परजीवियों की हत्या हराम है .अहिंसक लोग खून चुसवाने के लिए खटमल वाली खाटों पर सोने के लिए घंटों के हिसाब से भुगतान करते थे .  खटमलों के विनाश के लिए देहात में खाटों को गर्मी में कड़ी धूप में और जाड़ों में पोखरों के ठंडे पानी में डाल दिया जाता था . पीके को नीरज का प्रसिद्ध गीत –खटमल धीरे से जाना खटियन में भी  याद नहीं .अगर उन देहातियों को बैठने से पहले ही बता दिया जाता कि इन खाटों में खून चूसने वाले खटमल और पिस्सू मौजूद हैं तो उनके बापों की भी हिम्मत उन्हें घर ले जाने की नहीं होती .
लेकिन अंदर खाने पता चला है कि पीके के मैनेजरों ने  खाटों में परीक्षण के तौर पर यह व्यवस्था गुपचुप तरीके से लागू कर रखी थी . उन  झिलंगी खाटों पर  लेटने -सोने वालों को रात दिन उन्हीं की पार्टी के सपने आयेंगे .अब वे सर्वे के जरिये खाटों को ले उड़ने वाले लोगों के खून की जांच करेंगे कि उनके खून में किस पार्टी का डीएनए मौजूद है.तभी वे तय करेंगे कि उस खून को कैसे बदला जाय ? पार्टी ने इसी काम का जिम्मा पीके को सौंपा है .
@ मूलचन्द गौतम
# शक्तिनगर ,चन्दौसी ,संभल उ .प्र 244412   मोबाइल-9412322067


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