Wednesday, June 15, 2016

और अब टमाटर्र

# मूलचन्द्र गौतम
कभी आलू ,कभी प्याज,कभी दाल और अब टमाटर्र .प्यारेलाल चाहे अनचाहे अपने  पुराने जमाने में गुम हो जाते हैं .बुढ़ापे में शायद यह बीमारी आम हो जाती है .हम भी अपने बड़े बूढों के किस्सों पर अक्सर हँसते थे .देशी घी रूपये सेर मिलता था .गेहूं एक रूपये के बीस सेर और मटर को तो गरीबों के अलावा कोई पूछता ही नहीं था क्योंकि उसकी दाल गैस बहुत बनाती थी .उसे लेकर कुछ महान कविताओं की रचना भी लोकप्रिय थी .आज मटर पनीर से जुड़कर इज्जतदार हो गयी है .वो जमाने लद गये जब ककड़ियाँ लैला की उँगलियाँ और  मियां मजनूं की पसलियाँ हुआ करती थीं .अब तो दुकान पर ग्राहक को फाड़कर खा जाने को तैयार हैं .उनकी आँखों से चिंगारियां छूटती हैं .दुकानदार भी अब ठसक से सामान बेचता है –लेना है तो लो वरना चलते बनो .इसलिए अब कोई भी इज्जत बचाने के लिए भाव ही नहीं पूछता .भूल चूक लेनी देनी का तो सवाल ही नहीं .बैंक में भी कैशियर के सामने नोट गिनने वाले को घूर कर देखा जाता है ,जैसे रूपये उसके खाते से नहीं भीख में मिल रहे हों .
बुरा हो इस मीडिया का रोज हर मामूली चीज के भाव पूरे देश में अफवाह की तरह फैलाता है .पहले किसी को मालूम ही नहीं होता था की किस चीज का क्या भाव है ?पहले हम बड़े भाई के घर दिल्ली जाते थे तो साथ में लौकी या मौसम की कोई सस्ती सब्जी या खोया उपहार के बतौर ले जाते थे .भाभी बड़ी खुश हो जाती थीं जैसे उन्हें कल्पवृक्ष मिल गया हो .उन्हें हमारा सब्जियों के साथ आना अखरता नहीं था .
अब इस पंचसितारा संस्कृति ने सब गुड गोबर कर दिया है .हर सब्जी –सलाद बारहों महीने चाहिए .मौसम के खिलाफ मंहगी सब्जियां खाने के चलन ने मंहगाई दर को आसमान पर पंहुचा दिया है .रूपये किलो टमाटर मिलेगा तो कोई नहीं कहेगा कि सस्ता है क्योंकि वह किसान का है . कम्पनियां उसका खूब किसान छाप सास बनाकर रख लेती हैं .महंगा बेचने के लिए .कोल्ड स्टोर में पंहुचते ही वह आलू ,सेव की तरह पंच सितारा हो जाता है .मौसम के खिलाफ महंगी सब्जियां खरीदना और फिर पडौसियों –किटियों में इसका प्रचार करना स्टेट्स सिम्बल है .

बड़े बूढ़े मना करते थे की भई रात में दही मत खाओ लेकिन अब तीन टाइम दही से कोई परहेज नहीं .यहाँ तक कि डाक्टर तो नवप्रसूता को भी खूब दही खिलाते हैं .दावतों में तो भर ठंड में दही और आइसक्रीम की खपत सबसे ज्यादा होती है .सब कुछ अमरीका की तर्ज पर अप्राकृतिक होता जा रहा है .
महंगाई कोई दाल या सब्जी कम खाने को मना करे तो देश की जनता का सबसे बड़ा दुश्मन ,जैसे मना करने वाले की जेब फट रही हो .गेहूं महंगा हो तो केक खाओ या रूपये क्या पेड़ पर उगते हैं जैसी कहावतों के उद्धरणकर्ताओं की दुर्गति हमारे सामने है .सो समझदारी चुप रहने में है .एक चुप सौ को हरावे
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शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741



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