Friday, June 24, 2016

आओ पलायन -पलायन खेलें

# मूलचन्द्र गौतम

भारत अरसे से पलायन- पलायन खेल रहा है  .आज तक इतिहासकार ,पुरातत्ववेत्ता तय नहीं कर पाये कि आर्य यहाँ बाहर से आये थे या यहाँ के मूल निवासी थे ?क्या यह इस देश का दुर्भाग्य था जो तमाम आक्रमणकारी इस ओर आकर्षित होते रहे .इनमें से कुछ लुटेरे थे जो इसे लूटकर चले गये ,कुछ को यहाँ की आबोहवा इतनी पसंद आई कि यहीं के होकर रह गये .वर्चस्व की इस जंग में सब कुछ जायज था .कमजोर पिटते रहे ,ताकतवर पीटते रहे .मामला चाहे धर्म का रहा हो या शासन का .

पिटने वाले लोगों ने ताकतवर होते ही पुराने बदले लेने शुरू कर दिए .लोकतंत्र में चुनाव जीतने के समीकरणों के हिसाब से जाति और धर्म की गोलबंदियां होने लगीं ,ध्रुवीकरण होने लगे .इंसानियत और सर्व धर्म समभाव की दुहाई देने वाले मानवीय चेहरे खूंखार हो गये .हर चुनाव से पहले और बाद में दिलों  के बीच की दूरियां बढने लगीं .बुद्ध और गाँधी जैसे अहिंसा के पुजारी हत्या और हिंसा के लपेटे में आने लगे .सभ्यता और संस्कृति की सामासिकता का संक्रमण विवाद और अलगाव का रूप लेने लगा .हिंसा के इस नवाचार को भुनाने में लगी शक्तियों के चेहरों के नकाब उतरने लगे .
 आधुनिक शब्दावली के घटाटोप में तय करना मुश्किल हो गया है कि शासन की कौन सी पद्धति बेहतर है .रूस के विघटन और जी सात देशों की पूँजी की बढती ललक ने भूमंडलीकरण का जो विखंडित दर्शन पेश किया है वहाँ किसी देश के इतिहास और भूगोल का कोई अर्थ मतलब नहीं रह गया है .अमेरिका और चीन की व्यापारिक प्रतिद्वंदिता किस हद तक जाएगी कुछ नहीं कहा जा सकता।छुद्र स्वार्थों की राजनीति के मोतियाबिंद के कारण दूर का कुछ दिखाई नहीं देता . इसलिए तमाम अक्लमंद लोग प्रतिभा पलायन ,रोजगार पलायन में भी राजनीति का धंधा ढूँढने में लगे हैं .ब्रेन ड्रेन-ब्रेन गेम और ब्रेन गेन बन गया है .
# शक्तिनगर, चन्दौसी,संभल 244412
मोबाइल 8218636741

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