Friday, June 17, 2016

पार्टी लाइन

# मूलचन्द्र गौतम
जब से हर खेल को नियमों की रेखाओं में कैद किया गया है तब से उनका देसीपन ही खत्म हो गया .कुश्ती –कबड्डी जैसे देहाती खेल भी अब शहरी लगते हैं .लोकगीत का तो मतलब ही फ़िल्मी गीत हो गया है .पाला चीर कबड्डी के मजे ही अलग थे .प्रेमचंद आज होते तो उनकी कहानी गुल्ली डंडा क्रिकेट की गिल्लियों में फंसकर रह जाती .आज के इन खेल –खिलाडियों पर कोई क्लासिक रचना लिखी ही नहीं जा सकती .किसी माई के लाल में हिम्मत हो तो लिखकर दिखा दे .
यही हाल राजनैतिक पार्टियों का हुआ है .पहले एक ही पार्टी में कई –कई लाइनें एक साथ चलती रहती थीं .कभी गरम ,कभी नरम .गुलाबी ,लाल-सुर्ख लाल  ,नीली ,हरी के साथ भगवा का अलग ही जलवा था .दीपक के साथ यह पार्टी पहले केवल शहर के लालाओं तक सीमित थी .फिर इसमें सिन्धी और पंडित भी घुस गये .पंडित बहुत बदमाश कौम है .हर जाति और पार्टी में इनके यजमान निकल ही आते हैं .कितना भी नास्तिक होने का दावा करे कोई नेता और पार्टी जीत के लिए होम –हवन ,तन्त्र –मन्त्र से नहीं बच सकती .छोटे से छोटे कुकर्मी संत के  पीछे लाख पचास हजार वोट होते ही हैं .गाँव में तो मन्दिर-मस्जिद ,गुरद्वारे  ,जागरण ,हवन के चंदे के नाम पर कोई भी नेता तुरंत पिघल जाता है.ईंट ढोने वाले तक हनुमानजी की मठिया पर चार ईंट डालना जरूरी समझते हैं .
पहले भी पार्टियों में हाईकमान के नाम पर केवल एक नेता होता था ,लेकिन सामूहिकता का बोध भी रहता था .गांधीजी की भी एकछत्र तानाशाही खूब चलती थी . उनके अंध नेहरु प्रेम के कारण अनेक नेता उनसे छिटक गये और उनकी घर वापसी आज तक नहीं हो पायी है .उनकी इच्छा ही पार्टी लाइन मानी जाती थी .अब दल और दिल खुलेआम अलग –अलग भी चलते हैं और मजबूरी में साथ साथ भी .और लोग बोलते हुए भी कुछ नहीं बोल पाते क्योंकि पार्टी लाइन ,व्हिप का डंडा उनके पीछे लगा रहता है . जरा सा दायें –बांये होते ही आपको खुड्डे लाइन या लाइन हाजिर किया जा सकता है .और अब तो अफसरों से भी अपेक्षा की जाती है कि वे पार्टी लाइन को न लांघें और पार्टी के हर छुटभैये को अपना आका मानें . फिर भी मौकापरस्त हरजाइयों की हिम्मत के आगे सब ध्वस्त हो जाते हैं .इस तरह एक निकृष्टतम लोकतंत्र के पर्दे की आड़ में परिवार ,भाई भतीजावाद ,दामाद्वाद ,जातिवाद सब चलते रहते हैं .वादे वादे जायते तत्वबोध :की तरह .
अब जब से फिल्मों में पार्टी सोंग्स की धूम मची है तब से नेता परेशान हैं .पार्टी यूँ  ही चालेगी या मेरी मर्जी... के तडके ने जिस युवा तुर्क को पैदा किया है वह आतंक के जोर पर सब कुछ हासिल कर लेना चाहता है .अब हर नेता रखैलों के साथ अपने युवराज को भी साथ बल्कि आगे लेकर चलने पर विवश है .मगरमच्छ नेता की नींद हराम रहती है कि पता नहीं उसका कौन सा रिश्ता और रिश्तेदार ऐन मौके पर दगा दे जाय और रातों रात नई पार्टी खड़ी कर दे .ये फन फैलाये व्याल सब कुछ निगल जाने के बाद भी बुभुक्षित रहते हैं .इस पार्टी लाइन को निरंतर सम्भाले रखने का कौशल और नट करतब हरेक के बस की बात नहीं होती .
#शक्तिनगर, चन्दौसी,संभल 244412
मोबाइल8218636741

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